पांच लाख ग्राहकों से धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेजों से किए 63 फर्जी ऋण खाते तैयार किए गए, 553 करोड़ की धांधली

नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), मुंबई आंचलिक कार्यालय ने मेसर्स करनाला नगरी सहकारी बैंक लिमिटेड, पनवेल के मामले में सक्षम प्राधिकारी, एमपीआईडी (महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त) को 386 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियां वापस कर दी हैं, ताकि बैंक के उन जमाकर्ताओं के बीच इनका वितरण किया जा सके, जिन्होंने अपना पैसा खो दिया है। ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 5 के तहत संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क किया था। बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष ने अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर बैंक को धोखा दिया था। निजी निवेश के लिए बैंक के धन का गबन किया गया था।
ईडी ने पीएमएलए के तहत उक्त जांच ईओडब्ल्यू, सीआईडी, पुणे द्वारा 17.02.2020 को दर्ज एफआईआर के आधार पर शुरू की थी। एलईए ने अपने आरोपपत्र में आरोप लगाया था कि बैंक के अध्यक्ष और अन्य अधिकारियों ने आपराधिक साजिश रची। आरबीआई के दिशानिर्देशों और मानक बैंकिंग मानदंडों का पालन किए बिना जाली दस्तावेजों का उपयोग करके 63 फर्जी ऋण खाते तैयार किए।
पीएमएलए के तहत ईडी की जांच से पता चला है कि जालसाजी और धोखाधड़ी के अपराध से उत्पन्न आय को विवेकानंद शंकर पाटिल और उनके रिश्तेदारों द्वारा नियंत्रित विभिन्न संस्थाओं में भेज दिया गया था। उन्होंने करनाला नगरी सहकारी बैंक लिमिटेड से निकाले गए धन का उपयोग करके विभिन्न संपत्तियां और परिसंपत्तियां खरीदीं। अपराध की ऐसी आय (पीओसी) का उपयोग महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में विभिन्न स्थानों पर अचल संपत्तियों की खरीद के लिए किया गया था। 386 करोड़ रुपये की इन संपत्तियों को पीएमएलए की धारा 5 के तहत 17.08.2021 और 12.10.2023 को कुर्क किया गया था।
इसके अलावा, विशेष न्यायालय, पीएमएलए के समक्ष विषय मामले में अभियोजन शिकायत दिनांक 12.08.2021 दायर की गई थी। यह मुकदमा अभी चल रहा है। पीएमएलए विशेष न्यायालय, मुंबई ने 22.07.2025 को कर्नाला स्पोर्ट्स अकादमी, पनवेल स्थित संपत्ति को परिसमापक को सौंपने और उसे नीलामी के लिए रखने का आदेश पारित किया है। न्यायालय ने सक्षम प्राधिकारी, एमपीआईडी को जमाकर्ताओं के बीच वितरण के लिए पोसारी, रायगढ़ स्थित भूमि की नीलामी करने का भी आदेश दिया है। कर्नाला नगरी सहकारी बैंक लिमिटेड, पनवेल में 5 लाख से अधिक जमाकर्ताओं की कुल जमा राशि 553 करोड़ रुपये थी, जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई खो दी है। जमाकर्ताओं के व्यापक हित और वर्तमान में चल रहे पुनर्स्थापन प्रयासों को ध्यान में रखते हुए, ईडी ने प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कदम उठाए, जिसके परिणामस्वरूप पुनर्स्थापन संभव हो सका।