‘किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ..’, कोर्ट ने खारिज की सावरकर का नाम 1950 के कानून में जोड़ने की याचिका

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका खारिज कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को विनायक दामोदर सावरकर का नाम ‘प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950’ की अनुसूची में शामिल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। यह कानून पेशेवर और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कुछ खास प्रतीकों और नामों के अनुचित उपयोग को रोकने के लिए बनाया गया है।

चीफ जस्टिस (सीजेआई) बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। खुद पेश हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि वह पिछले 30 वर्षों से सावरकर पर शोध कर रहे हैं और उनकी ऐतिहासिक भूमिका को कानूनी रूप से स्थापित करने का अवसर चाहते हैं। उन्होंने शीर्ष कोर्ट से आग्रह किया था कि केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय को निर्देश दिए जाएं कि सावरकर का नाम अधिनियम की अनुसूची में जोड़ा जाए।

इस पर सीजेआई ने पूछा, आपके किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है? याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 51A का हवाला दिया और कहा कि राहुल गांधी जैसे नेता उनके कर्तव्यों को बाधित नहीं कर सकते। अनुच्छेद 51A नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों से जुड़ा है। सीजेआई ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 32 के तहत वही याचिकाएं स्वीकार होती हैं, जिनमें मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।

बेंच ने कहा, अगर आप चाहते हैं कि कुछ पाठ्यक्रम में शामिल हो, तो केंद्र सरकार को आवेदन दें। याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने पहले ही सरकार को प्रार्थना पत्र भेजा है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने सावरकर का नाम 1950 के कानून में जोड़ने की याचिका खारिज की। इससे पहले 25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में सावरकर पर दिए गए ‘गैर-जिम्मेदाराना’ बयान को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फटकार लगाई थी, लेकिन यूपी में दर्ज आपराधिक मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

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